छाई कैसी अंधियारी ....!!
गगन मेघ काले देख ...
मछली सी तड़प उठी ...
कलप उठी पीर....
बहे अंसुअन नीर ....
त्रिदेव ...बंद करो त्रिनेत्र का तांडव ...
बहुत भुगत चुकी अब ....
होने दो ..फिर आज ...
नित प्रात की ...
निज प्रात ...!!
अढ़सठ तीरथ घट भीतर मेरे ....
स्फटिक के शिवलिंग सजात ...!!
मोगरे के पुष्प तोड़ ...
जग से मुख मोड़ ...
आज घट भीतर करूँ अर्पण ....
स्वीकारो मेरा कुसुम तर्पण ...
पुनः करूँ वंदन .....
वंदनवार बनाऊँ ...
मन-मंदिर सजाऊँ ...
प्रकृति सा प्राकृत ....
पुनः करो सुकृत ...
देवभूमि बन ....
अब रहे मन ...
गगन मेघ काले देख ...
मछली सी तड़प उठी ...
कलप उठी पीर....
बहे अंसुअन नीर ....
त्रिदेव ...बंद करो त्रिनेत्र का तांडव ...
बहुत भुगत चुकी अब ....
होने दो ..फिर आज ...
नित प्रात की ...
निज प्रात ...!!
अढ़सठ तीरथ घट भीतर मेरे ....
स्फटिक के शिवलिंग सजात ...!!
मोगरे के पुष्प तोड़ ...
जग से मुख मोड़ ...
आज घट भीतर करूँ अर्पण ....
स्वीकारो मेरा कुसुम तर्पण ...
पुनः करूँ वंदन .....
वंदनवार बनाऊँ ...
मन-मंदिर सजाऊँ ...
प्रकृति सा प्राकृत ....
पुनः करो सुकृत ...
देवभूमि बन ....
अब रहे मन ...
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 29/06/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
बहुत आभार यशोदा मेरी रचना हलचल पर लेने हेतु ....!!
Deleteसच में त्रिपुरारी अपना तीसरा नेत्र खोल दिया था , लेकिन वो भोले भंडारी है , आर्तनाद सुनके पिघल भी जाते है .
ReplyDeleteसच्ची प्रार्थना ...जरूर सुनेंगे भोले नाथ.
ReplyDeleteदेवभूमि की पीड़ा .... देवता को सुननी ही होगी .... मन से की गयी प्रार्थना प्रभु सुनेंगे ही .... सुंदर रचना
ReplyDeleteआज घट भीतर करूँ अर्पण ....
ReplyDeleteस्वीकारो मेरा कुसुम तर्पण ...
सुंदर प्रार्थना....
सामायिक-सुंदर कविता
ReplyDeleteआपकी मनोकामना पूर्ण हो
ReplyDeleteऔर चारो ओर शांति व्याप्त हो
ऐसी ही मैं भी दुआ कर रही
हार्दिक शुभकामनायें
सच्चे मन से की गयी प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है..
ReplyDeleteसुन्दर...
:-)
त्रिदेव ...बंद करो त्रिनेत्र का तांडव ...
ReplyDeleteबहुत भुगत चुकी अब ....
खुबसूरत ईश वंदना
...जरूर सुनेंगे सच्ची प्रार्थना
ReplyDeleteधुर्जटि से सुन्दर विनती. उन्हें अपनी निद्रा तोड़ हम सब को सुनने की शीघ्र जरूरत है.
ReplyDeleteप्रांजल रचना भाव और अर्थ सौन्दर्य बिम्ब विधान की श्रेष्ठता लिए .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteहोने दो आज.. नित प्रात की.. !! निज प्रात... !! गहन भाव लिए हुए... सुंदर रचना !!
ReplyDeleteपावन भाव.....
ReplyDeleteसुंदर एवम् भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteमैं ऐसा गीत बनाना चाहता हूं...
बहुत सुन्दर प्रार्थना।
ReplyDeletehe bholeshankar...........ab to kuchh karo
ReplyDeletekhubsurat prarthna...
बहुत मनमोहक प्रार्थना ... मन भीतर मंदिर देव तुम आ बसों ... सादर
ReplyDeleteदेवभूमि यह सचमुच!
ReplyDeleteकिन्तु दानवी-क्रीड़ा नर की
भग्न कर रही सब कुछ!
इन विषम प्रहरों में यह प्रार्थना ही कुछ आश्वस्त करती है!
आपकी प्रार्थना सफल हो............
ReplyDelete
ReplyDeleteतीसरा नेत्र हम बच्चों के पास ही है .शिव के बच्चों के पास .शिव ने ही हमें यह ज्ञान दिया है .वह तांडव नहीं करता .तांडव कराते हैं हमारे कर्म ,प्रकृति के साथ हमारी छेड़छाड़ .ॐ शान्ति .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
बारम्बार वन्दनीय है ये वंदना..
ReplyDeleteप्रकृति सहेजे अपनी गरिमा,
ReplyDeleteशेष क्षोभ का विशद बिखरना।
इश्वर ये प्रार्थना ज़रूर सुने ....ऐसी विनाशलीला कभी न हो ...पर मनुष्यों को
ReplyDeleteभी सद्बुद्धि मिले ....ये जो घटा है हमारे कर्म फल ही हैं....
bhavpurn-***
ReplyDeleteआप के दिल से निकली प्रार्थना समस्त
ReplyDeleteमानव और जीव के हित में है ....
शुभकामनायें!
बहुत ही भाव विभोर करती रचना अनुपमा जी ! मन मंदिर में ही पूजा अर्चना अर्पण तर्पण कर लें वही उचित होगा ! इन दिनों त्रिपुरारी रुष्ट प्रतीत होते हैं ! जाने कब उनका यह रोष शांत होगा ! बहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteदेवभूमि बन रहे अब मन ।
ReplyDeleteसुंदर प्रार्थना अवश्य फलित होगी ।
आभार आप सभी का आपने मेरे हृदय के उद्गार पर अपने अपने विचार दिये ...!!प्रलय ही आई थी उत्तराखंड में.....!!
ReplyDeleteलोगों की बिपदा देख कर बहुत दुख हो रहा था ...!!
शिव सबको सद्बुद्धि दें की अपनी भूमि की रक्षा हम स्वयं कर सकें ...!!
The metaphor in this poem and the pain it portrays is tremendous.
ReplyDeleteअनुपमा जी, सचमुच आज देश के लिए बहुत बड़ी आपदा की घड़ी है, दिल से निकली दुआ कभी व्यर्थ नहीं जाती..ह्रदय से उठे उद्गार पहुंचे हैं अवश्य अस्तित्त्व तक..
ReplyDeleteबहुत सुंदर.सटीक.बधाई!
ReplyDeleteकैसे मिल पाएंगे ?जो लोग,खो गए घर से,
ReplyDeleteमां को,समझाने में ही,उम्र गुज़र जायेंगी !
प्रार्थना हम सबकी भी यही है, कृपा करेंगे भोलेनाथ,यहाँ भी पधारे
ReplyDeletehttp://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_3.html
शुक्रिया अनुपमा जी उत्साह बढाने का .ॐ शान्ति .चार दिनी सेमीनार में ४ -७ जुलाई ,२ ० १ ३ ,अल्बानी (न्युयोर्क )में हूँ .ॐ शान्ति .
ReplyDelete.ॐ शान्ति .
फुर्सत मिले तो शब्दों की मुस्कराहट पर ज़रूर आईये
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, मनोरम वंदन।
ReplyDeleteसभी के हृदय की प्रार्थना को स्वर देती कविता!
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