व्यथित हृदय की वेदना का
कोई तो पारावार हो
ला सके जो स्वप्न वापस
कोई तो आसार हो
मूँद कर पलकें जो सोई
स्वप्न जैसे सो गए
राहें धूमिल सी हुईं
जो रास्ते थे खो गए
पीर सी छाई घनेरी
रात भी कैसे कटे ,
तीर सी चुभती हवा का
दम्भ भी कैसे घटे
कर सके जो पथ प्रदर्शित
कोई दीप संचार हो
हृदय के कोने में जो जलता,
ज्योति का आगार हो
व्यथित हृदय की वेदना का
कोई तो पारावार हो
ओस पंखुड़ी पर जमी है
स्वप्न क्यूँ सजते नहीं ?
बीत जात सकल रैन
नैन क्यूँ मुंदते नहीं ?
विस्मृति तोड़े जो ऐसी ,
किंकणी झंकार हो
मेरी स्मृतियों की धरोहर
पुलक का आधार हो !!
व्यथित हृदय की वेदना का
कोई तो पारावार हो
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-06-2022) को चर्चा मंच "निम्बौरी अब आयीं है नीम पर" (चर्चा अंक- 4455) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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शास्त्री जी सादर नमस्कार
Deleteमेरी रचना को चर्चा मंच पर लेने हेतु सादर धन्यवाद आपका |
व्यथा का कोई अंत नहीं तो व्यथित हृदय का परिवार कैसे मिलेगा ।
ReplyDeleteखूबसूरत रचना ।।
हृदयस्पर्शी सृजन
ReplyDeleteविस्मृति तोड़े जो ऐसी ,
ReplyDeleteकिंकणी झंकार हो
मेरी स्मृतियों की धरोहर
पुलक का आधार हो !!
अत्यंत सुंदर ।
बहुत सुंदर,वाह वाह!
ReplyDeleteवाह वाह
ReplyDeleteअद्भुत , अद्भुत, अद्भुत ...वाह कर सके जो पथ प्रदर्शित
ReplyDeleteकोई दीप संचार हो
हृदय के कोने में जो जलता,
ज्योति का आगार हो
व्यथित हृदय की वेदना का
कोई तो पारावार हो...निश्चित ही भीतर तक कुरेद देने वाली रचना अनुपमा जी...
मार्मिक रचना है
ReplyDeleteहिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
प्रार्थना स्वीकार हो. भाव सलिला पुनीता.
ReplyDeleteविस्मृति तोड़े जो ऐसी ,
ReplyDeleteकिंकणी झंकार हो
मेरी स्मृतियों की धरोहर
पुलक का आधार हो !! ..बहुत सुंदर सराहनीय रचना।
कर सके जो पथ प्रदर्शित
ReplyDeleteकोई दीप संचार हो
हृदय के कोने में जो जलता,
ज्योति का आगार हो
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर ।
कर सके जो पथ प्रदर्शित
ReplyDeleteकोई दीप संचार हो
हृदय के कोने में जो जलता,
ज्योति का आगार हो
वाह!!!
लाजवाब सृजन ।
बहुत सुंदर सृजन अनुपमा जी, हृदय स्पर्शी जैसे अंतर से निकले शब्द।
ReplyDeleteमोहक गठन।
किंकणी की झंकार अवश्य होगी।
सस्नेह।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteविस्मृति तोड़े जो ऐसी ,
ReplyDeleteकिंकणी झंकार हो
मेरी स्मृतियों की धरोहर
पुलक का आधार हो !!
अंतर्मन से उपजी सुंदर प्रार्थना!
मन की वदना को अंतर्मन से दूर किया जाता है ...
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण ...