मैं शब्द हूँ
नाद ब्रह्म ...
प्रकृति में रचा बसा ...!!
हूँ तो भाव भी हैं
किन्तु ,
मौन रहूँगा तब भी
भावों का अभाव न होगा !!
प्रतिध्वनित होती रहेगी
गूंज मेरी , अनहद में
उस हद से परे भी
प्रकृति की नाद में ,
जल की कल कल में
वायु के वेग में
अग्नि की लौ में ,
धृति के धैर्य में,रंग में ,बसंत में,
और आकाश के विस्तार में
पहुंचेगी मेरी सदा तुम तक !
प्रभास तब भी जीवित होगा !!
प्रेम तब भी जीवित होगा ...!!!
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति ''
सुन्दर
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२१-०७-२०२१) को
'सावन'(चर्चा अंक- ४१३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय से सादर धन्यवाद अनीता जी, मेरी रचना के चयन हेतु!
Deleteमौन रहकर भी जो सारे भावों का जन्मदाता है वही तो प्रेम का प्रदाता है, सुंदर रचना!
ReplyDeleteशब्द से सब गुंजित है। सारी ऊर्जा का स्रोत वह प्रथम शब्द। गहरी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteधृति के धैर्य में,रंग में ,बसंत में,
ReplyDeleteऔर आकाश के विस्तार में
पहुंचेगी मेरी सदा तुम तक !
प्रभास तब भी जीवित होगा !!
प्रेम तब भी जीवित होगा ...!!!बेहद उत्कृष्ट सृजन - - साधुवाद।
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह, शब्दों की माया का सुंदर वर्णन।
ReplyDeleteअति सुन्दर सृजन एवं भाव ।
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब सृजन
ReplyDeleteवाह!!