भाव की स्याही में डूबी हुई कलम
कविता झट से कह देती है
जो न कह पाए हम !!
रंगों की रंगोली से
गढ़ती है आकृति
झमाझम वर्षा पाकर
जैसे निखरती है प्रकृति !!
शब्द और भाव से
भर उठता है प्याला
छलक छलक उठती है
कवि की मधुशाला !!
एक एक शब्द में होते हैं
अनूठे से भाव ,
पढ़ते पढ़ते यूँ ही
छोड़ जाती है अपना प्रभाव !!
कहीं पुष्प बन कर उभरती है ,
कहीं नदिया बन कर उमड़ती है ,
प्रकृति तो प्रकृति है
कहीं पाखी बन उड़ती है
कितने ही रूप में
कह जाती है मन की
समां जाती है शब्दों में
जैसे भावों की अनुकृति !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 29 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी रचना को सम्मिलित किया आपका बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी!!
Deleteप्रकृति के सृजन और भावों के सृजन में एक्य को देखती सुंदर रचना
ReplyDeleteकविता झट से कह देती है जो न कह पाए हम। ठीक कहा आपने। यही सच्ची कविता की पहचान है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन अनुपमा जी ,सच कविता प्रकृति के सदृश ही है, रहस्यमय और सरस सुखद ।
ReplyDeleteसार्थक।
ठीक कहा आपने,
ReplyDeleteशब्द को चुनकर
भाव की स्याही में डूबी हुई कलम
कविता झट से कह देती है
जो न कह पाए हम !!
रंगों की रंगोली से
गढ़ती है आकृति
झमाझम वर्षा पाकर
जैसे निखरती है प्रकृति !!
Bahot Acha Jankari Mila Post Se . Ncert Solutions Hindi or
ReplyDeleteAaroh Book Summary ki Subh Kamnaye