नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

29 September, 2013

झरने लगे हैं पुष्प हरसिंगार के....................!!

पुनः शीतल चलने लगी  बयार  ....
झरने लगे हैं पुष्प हरसिंगार ...........
आ गए फिर दिन गुलाबी ....
प्रकृति करे  फूलों से  श्रृंगार ………….!!

नवलय भरे किसलय पुटों में........
सुरभिमय रागिनी के ....
प्रभामय नव छंद लिए कोंपलों में.............
अभिज्ञ  मधुरता हुई दिक् -शोभित….
सिउली के पुष्पों से पटे हुए वृक्ष .............!!

सुरभि से कृतकृत्य हुई  धरा..............
पारिजात  संपूर्णता  पाते जिस  तरह ......
जब खिलकर झिर झिर झिरते हैं ...
धरा का ..प्रसाद स्वरूप आँचल भर देते हैं ..
और अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं ....
पुनः धरा को ही ....इस तरह ....!!!

....................................................................................................


24 September, 2013

जीवन की मौलिकता .....!!


''महुआ ले आई बीन के -
और तिल्ली  धरी है कूट -
आज सजन की आवती -
सो कौन बात की छूट .......!!

 गुड़ होतो तो
 गुलगुला बनाती  ....
तेल   लै आती उधार...
मनो का करों जा बात की ..
मैं आटे से लाचार ........!!!!''



ये  बुन्देलखंडी कहावत, अम्मा (मेरी दादी ) बहुत सारी  चीज़ों में अपनी लाचारगी को छुपाते हुए, बहुत खुश होकर कहा करती थीं |उनकी लाचारगी अब समझ में आती है |

कितना कुछ करना चाहते हैं हम इस जीवन में !!और ज़िन्दगी के इस घेरे में बंध कर क्या - क्या कर पाते हैं ...!!


स्वप्न और यथार्थ के बीच की कड़ी ही जीवन है ...!!
भले ही हम तरक्की कर चाँद पर ही क्यों न घर बना लें ,कुछ मौलिक बातों से दूर हम कभी ....कभी नहीं जा पाते  !!यही शाश्वत सत्य से जुड़ाव ही, हमें जीवन को जीने का कोई संदर्भ ,कोई कारण  भी  देता है !!

  समय के साथसाथ पुरानी कहावते ,मान्यताएं सभी तो दम तोड़ रहीं हैं |अम्मा की दी हुई इस धरोहर को आप सभी तक पहुंचा कर उनको एक भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ |वो क्या गयीं मेरा बुन्देलखंडी भाषा से जैसे नाता ही टूट गया |
मेरा वो --''काय अम्मा ?''पूछना और उनका वो --''कछु नईं बेटा ....''कहना बहुत याद आ रहा है | आज उन्हीं की यादों  के साथ पुनः जी ले  रही हूँ अपना बचपन थोड़ी देर के लिए ....!!

''धीरे गूँद  गुंदना री गूँदना......धीरे गूँद गूँदना री .....''
ये गीत भी अम्मा गाती थीं |
और इसे  लिखते लिखते भी मन मुस्कुरा  रहा है |याद आ रहा है उनके हाथ पर बना वो गूँदना |आजकल के बच्चे जिसे टैटू कहते हैं ,अम्मा उसे गूँदना कहती थीं |सच है न .........कुछ तो है जो कभी नहीं बदलता .....जैसे जीवन की मौलिकता .....!!या हमारा माटी से जुड़ाव ....

''मन क्यूँ नहीं भजता राम लला .....
कृष्ण नाम की माखन मिसरी ....
राम नाम के दही बड़ा ...
मन क्यूँ नहीं भजता राम लला ....!!''

अम्मा काम करती जाती थीं और गाने गुनगुनाती जाती थीं !!
''छोटी-छोटी सुइयां रे ....जाली का मेरा काढ़ना ....!!''
अब समझ में आता है ये सब रियाज़ होता था उनका ...!!
''संजा के मिसराइन के इते बुलौआ  आए |सोई आए गाना चल रओ''(शाम को मिसराइन याने -श्रीमति मिश्रा ,के घर गाने का बुलावा है ,इसलिए गाने का रियाज़ हो रहा है ...!!):))

और फिर शाम को मिसराइन के घर ढोलक  की धमक और गीतों भरी वो शाम .....
कितनी सादगी से ,परम्पराओं से जुड़ा सार्थक सुंदर जीवन ...........


19 September, 2013

ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!

रात  ढली   और ....
सुबह कुछ इस तरह  होने लगी ....!!

गुलमोहर  से रंग झरे ...……
सूरज ऐसा रोशन हुआ ...
कि मोम भी पिघलने लगी ...

आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल ...
पिया का पतियाँ  लाई .....
कूक कूक
राग वृन्दावनी  सारंग सुनाने लगी ...

भरी दोपहर याद पिया की ..
बिजनैया जो डुराने लगी ...
कूजती रही  कोयल ...
हूक जिया की,
पल पल जाने लगी ...
निरभ्र  आसमान में ,
चहकते विहग ....
जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!

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वृन्दावनी सारंग दिन में गाए जाने वाला राग है …!!
बिजनैया -पंखा
डुराए -झुलाना .

14 September, 2013

मातृभाषा का सम्मान करें …………

नील निलय ,
नीलाम्बर निशांत  ,
निशि की  नीरवता सुशांत ,

अरुषि   की लालिमा में परिवर्तित हुई ,
भोर भई ,

प्रकाश का प्रस्फुटन हुआ ,
प्रभा  पंख पसार रही ,
दृष्टिगोचर होते सप्त रंग ,
विस्तृत नभ पर विस्तार हुआ ,
श्रवण श्रुति मुखर  हुई,

मन परिधि पर छिटक रहा ,
सप्त रंगों का इन्द्रधनुष ,
कूची में भर लिए रंग ,
मिट गया ह्रदय कलुष ,
आओ चलो चलें……… छेड़ें रागिनी कोई ,
गायें मंगलगान ,
कुछ रंग भरें ,
कोई  गीत रचें,कुछ गीत लिखें ,
नहीं बैर कहीं ,बस प्रीत लिखें ,
हिन्द देश के निवासी हम  …………….
हिंदी का गुणगान करें   …………………
लिखें ,रचें,कुछ ऐसा………………
आओ मातृभाषा का  सम्मान करें…………



11 September, 2013

मयुर पंखी मन कर जाता .....!!




सँजो रही हूँ ....
जीवन का एक एक पल
और ...बूंद  बूंद सहेज  ....
भर रही हूँ मन गागर ...
टिपिर टिपिर मन पर पड़ती ....
तिमिर हटाती बूंद बूंद ........
जैसे झर रही है  वर्षा ...
उड़ेलने को है व्याकुल.......
अपना समग्र प्रेम सृष्टि पर ...
कुछ चुन रही हूँ   शब्द  .....
गुन  रही हूँ भाव ...
कुछ भर रही हूँ  रंग ....
कुछ बुन रही हूँ   ख़ाब ....

कभी घिर जाती हूँ ..
 मदमाती सावन  की श्यामल घटाओं से ....

कभी भीग जाती हूँ ......
तर बतर अतर .....
वर्षा  की बौछारों से .....

झूमती डार डार ....
कभी मंद मंद मलयानल ....
जैसे लहरा देता है .....
सृष्टि का आँचल .....

मन  में हर दृश्य नया रंग भर जाता ...
  सावन ....मनभावन ...सा
मयुर पंखी मन कर जाता .....

18 August, 2013

भज मन हरि हरि......!!




ईश्वर पर है पूर्ण विश्वास मुझे
मैं पत्थर में भगवान पूजती  हूँ ...!!

और  लिखती   हूँ
.....भज मन हरि हरि ......!!
अहम तुम्हारी सोच है
मेरी कविता नहीं

लिखी हुई बंदिश मेरी
निर्जीव है
कृति मेरी सूर्योदय है या सूर्यास्त है ...??

तुम पढ़ते हो और
फूंकते  हो उसमें प्राण
अपनी सुचारू भावनाओं के
सजल श्रद्धा ....प्रखर प्रज्ञा

तुम्हारे सुविचारों से ....सनेह से
 स्वयं के उस संवाद से
उपजती है संवेदना


और ये  संवेदना ही तो करती है प्रखर
मेरे सभी भावों को
तब ...समझती है
मुस्कुराती  है .....!!

जब संवेदना मुस्कुराती  है
तब ही तो निखरता है
मेरी कविता का सजल सा
शुभ प्रात  सा
उज्जवल सा ...स्वरूप
सूर्योदय  सा ......!!
खिला खिला सा ........!!


लिखे हुए शब्द तो मेरे
उस पत्थर की तरह हैं
जिसमें तुम अपनी सोच  से
फूंकते हो प्राण

पाषाण सी
मैं तो कुछ भी नहीं
पूज्य  तो  तुम ही बनाते हो मुझे
मील का पत्थर भी
फिर  क्यों ठोकर मारकर
बना देते हो राह पड़ा पत्थर कभी ...?????

सच ही है न
अहम तुम्हारी सोच है
मेरी कविता नहीं

मेरी सोच देती है
मेरी पत्थर सी कविता को तराश
और भर देती है
मेरी पत्थर सी कविता में झरने सी उजास
तुम्हारी सोच  देती है -
मेरी पत्थर सी कविता  को वजूद ......!!



हाँ .......और तब .......तुम्हारी ही सुचारु सोच देती है ...
मेरी कविता  को उड़ान  भी .........!!



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सोच से जुड़े ....समझ से जुड़े .........!!उसी से बनी हो शायद कोई कविता ......और हमारा आपका क्या रिश्ता है ...???सोच ही तो जोड़ती है हर इंसान को हर इंसान से ........!!!यही तो मानवता है .............!!!!!!!!!

14 August, 2013

एक सम्पूर्ण जीवन .....!!

दुर्गा रूप ....
शक्ति स्वरुप ...
सबल सक्षम ....
समाज की  व्यवस्था के .........
दुर्गम पथ पर सहर्ष चलती ...
.....मैं हूँ  भारतीय नारी  ....



आसक्ति से अनुरक्ति की ओर ....
अनुरक्ति   से  भक्ति की ओर .....
भक्ति से ही पुरस्कृत होती ...
काँटों में भी ...
मेरा .... खिलता है  मन ...
जीता सहर्ष एक  सम्पूर्ण   जीवन .....!!!!

धुरी परिवार की .....
समाज की .....
देश की ....
सकल ब्रह्माण्ड की ही ....

मैं हूँ भारतीय नारी ....!!

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आइये आज प्रण करें समाज में नारी को मान देंगे ,सम्मान देंगे ,वो स्थान देंगे जिसकी वो हकदार है ......!!कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में आवाज़ उठाएंगे ......!और  अपनी भारत माता का मान बढ़ाएँगे .....!!
जय हिन्द ...!!