छाई दुपहरी.. चढ़ा सुनहरी..
चम -चम चमके ...
दमके सूरज ....
चहुँ दिस देखूं ...
सूनी सी है ..
निर्जन सी गलियारी लगती ..
ना तू मेरा ना मैं तेरा ...
जीवन कैसा ..
शुष्क नयन सा ...!!
आया सावन लाया बदरा ....
नीर भरे घन छाये बदरा ...!!
कारे कारे आये बदरा ...
मस्त पवन -
मन भाये बदरा ...!!
तक -तक ताकत आसमान ...
भरता था मन नीर ...
तब -
नीर भरे नयनो में ..
भरता जीवन
कैसी निर्झर पीर ...!!
अब ..
पीर झरे झर प्रीत पगे ...
थी कैसी जाने प्यास ...
आली री मोरा ...
तरसे है मन ...!!
कब बरसेंगे -
कारे ये घन ...!!
कब बरसेंगे -
कारे ये घन ...!!
जागे-जागे ..
मन मा मोरे ..
करत -करत अरदास ...
प्रभु दरसन की आस .....
सखीरी ...
पिया मिलन की आस .....!!
सखीरी ...
ReplyDeleteपिया मिलन की आस .
इंतज़ार का भी अलग मज़ा है.
बहुत सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteजागे-जागे ..
ReplyDeleteमन मा मोरे ..
करत -करत अरदास ...
प्रभु दरसन की आस .....
सखीरी ...
पिया मिलन की आस .....!!
bahut hi apnatw liye bhaw
खनकती हुई रचना !!
ReplyDeleteये बादल भी कितना कष्ट देते हैं .. :):)
ReplyDeleteसुन्दर भाव से सजी अच्छी रचना
ग्रीष्म ऋतू में शुष्क वातावरण
ReplyDeleteऔर शुष्क मन ...
निर्जीव हो जातीं है आशाएं....
बदल छाये ही हैं ...
अभी तो बरसे भी नहीं ...
फिर भी ...
प्रतीक्षा है ...
वर्षा ऋतू के आगमन की ....
आशा है ..आपको मेरी रचना पसंद आएगी ....!!
बहुत सुंदर ! कविता एक भावलोक में ले जाती है..
ReplyDeleteसुफ़ियाना भाव लिए बेहतरीन आध्यात्मिक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteये इन्तज़ार भी बड़ा ही प्यारा है ......
ReplyDeleteकरत -करत अरदास ...
ReplyDeleteप्रभु दरसन की आस .....
सखीरी ...
पिया मिलन की आस .....!!
सच है.. बहुत सुंदर
सखीरी ...
ReplyDeleteपिया मिलन की आस
ये इन्तज़ार भी बड़ा ही प्यारा है, बहुत सुंदर......
वाह!! अति सुन्दर!!!
ReplyDeleteआया सावन लाया बदरा ....
ReplyDeleteनीर भरे घन छाये बदरा ...!!
कारे कारे आये बदरा ...
मस्त पवन -
मन भये बदरा ...!!
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! शानदार और भावपूर्ण रचना! बधाई!
जागे-जागे ..
ReplyDeleteमन मा मोरे ..
करत -करत अरदास ...
प्रभु दरसन की आस .....
सखीरी ...
पिया मिलन की आस .....!!बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! बहुत सुन्दर चित्रण
बहुत सुंदर....मन के भावों का मनमोहक चित्रण.........
ReplyDeleteशास्त्रीजी ..
ReplyDelete"पिया मिलन की आस .....!!"
चर्चा मंच पर लेने के लिए आभार आपका ...!!
पिया मिलन की आस और मन की अधीरता को बड़े सुन्दर शब्द एवं भावाभिव्यक्ति दी है ! शुष्क नयनों का यह इंतज़ार जल्दी समाप्त हो यही प्रार्थना है ! बहुत मनमोहक रचना ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण,भावों को बखूबी पिरोया है प्रेम के धागे में
ReplyDeleteअनु दी , इसे तो झूम झूम के गाने का मन हो रहा है..! सच में !
ReplyDeleteसखी री पिया मिलन की आस ..! सूफियाना तरह की तड़प लिए हुए है ये - पिया मिलन की आस.
सशक्त रचना शब्दों की और भावों की।
ReplyDeleteइधर वर्षा का आगमन हो चुका है। ऐसे वातावरण में कविता की सम्प्रेषणीयता सुगम हो गई है।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
मन मा मोरे ..
ReplyDeleteकरत -करत अरदास ...
प्रभु दरसन की आस .....
सखीरी ...
....!!बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! शानदार
लाजवाब लिखा है आपने.
ReplyDeleteइंतज़ार भी कितना प्यारा है.बहुत अच्छे भाव.
ReplyDeletebahut sunder rachna...kindly vist my blog..era13march.blogspot.com
ReplyDeleteअनुपमा जी बहुत सुन्दर पंक्तियाँ --आया सावन लाया बदरा -मन मस्त हो गया
ReplyDeleteअब ..
पीर झरे झर प्रीत पगे ...
थी कैसी जाने प्यास ...
आली री मोरा ...