धरा पर छाते हैं ...मन को लुभाते हैं ..
घूम घूम घिरते हैं ...मतवारे बदरवा ...
कैसे उड़ते है ......कारे बदरवा ....घूम घूम घिरते हैं ...मतवारे बदरवा ...
कारे मतवारे घुँघरारे बदरवा .. ...... .....!!
उड़ते हवा के संग-संग ..
उलझी-उलझी लटों जैसे...
कुछ उलझे-उलझे .......
उड़ते--उड़ते ...लट उलझाते ...
मन छू जाते ...!!
उमड़ते ..घुमड़ते ....
जैसे नयना नीर भरे ...
भर-भर नीर भर लाते ..
कारे मतवारे कजरारे बदरवा ....!!
अखियन से मन तक उतराते ...
नैनन बन जाते कजरवा ...
मन में बजाते कहरवा ...
जीवन से सुर-ताल मिलाते ...
कुछ कह जाते ...कुछ सुन जाते ...
कुछ दे जाते ...कुछ ले जाते ..
भरमाते ...उड़ जाते ...
कारे मतवारे कजरारे बदरवा ....!!
छाये मोरे देस आज ....कारे कारे बदरवा ....!
उड़ते हवा के संग-संग ..
उलझी-उलझी लटों जैसे...
कुछ उलझे-उलझे .......
उड़ते--उड़ते ...लट उलझाते ...
मन छू जाते ...!!
उमड़ते ..घुमड़ते ....
जैसे नयना नीर भरे ...
भर-भर नीर भर लाते ..
कारे मतवारे कजरारे बदरवा ....!!
अखियन से मन तक उतराते ...
नैनन बन जाते कजरवा ...
मन में बजाते कहरवा ...
जीवन से सुर-ताल मिलाते ...
कुछ कह जाते ...कुछ सुन जाते ...
कुछ दे जाते ...कुछ ले जाते ..
भरमाते ...उड़ जाते ...
कारे मतवारे कजरारे बदरवा ....!!
छाये मोरे देस आज ....कारे कारे बदरवा ....!
बरसन आये मोरे देस आज ...
कारे कारे बदरवा ....
कारे मतवारे घुँघरारे बदरवा ....!कारे कारे बदरवा ....
सावन से पहले ही सावन का समा बाँध दिया.सुन्दर गीत.
ReplyDeleteशिखा जी जब सावन आये तब आये ...मुम्बई मे मौसम बहुत सुहाना है :))...बरिश शुरु है ...!!
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteमिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में
जहाँ रचा गया महाकाव्य मेघदूत।
अखियन से मन तक उतराते ...
ReplyDeleteनैनन बन जाते कजरवा ...
मन में बजाते कहरवा ...
जीवन से सुर-ताल मिलाते ...
कुछ कह जाते ...कुछ सुन जाते ...
भरमाते ...उड़ जाते ...baadlon kii sair achhi lagi
अखियन से मन तक उतराते ...
ReplyDeleteनैनन बन जाते कजरवा ...
मन में बजाते कहरवा ...
जीवन से सुर-ताल मिलाते ...
कुछ कह जाते ...कुछ सुन जाते ... भीगी भगी सी कविता मन को माह गयी
कुछ कह जाते ...कुछ सुन जाते ...
ReplyDeleteभरमाते ...उड़ जाते ...
कारे मतवारे कजरारे बदरवा ....!
....बहुत सच कहा है...बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति..!!!
सचमुच ऐसा लग रहा है सावन आ गया... सुन्दर रचना
ReplyDeletepuri tarah bhinga diya aapne ..............
ReplyDeleteआजकल ये बाद्ल उमड़-घुमड़ ही रहे हैं। बरस नहीं रहे।
ReplyDeleteइसलिये ये रचना जल्दी पोस्ट की क्योंकि यहाँ मुम्बई मे आसाढ़ की मेहरबानी है ...बादल छाते कम हैं ,बरसते ज्यादा हैं |अब शीघ्र ही झमाझम बारिश पर लिखना पड़ेगा ...!:)
Deleteअखियन से मन तक उतराते ...
ReplyDeleteनैनन बन जाते कजरवा ...
मन में बजाते कहरवा ...
जीवन से सुर-ताल मिलाते ...
कुछ कह जाते ...कुछ सुन जाते .
बहुत सुंदर .... दिल्ली की भीषण गर्मी में यह रचना फुहार जैसी लग रही है :)
सच मे दी... दिल्ली की बरसात और मुम्बई की बरसात मे बहुत अंतर है ..:))...
Deleteमनमोहक गीत रचा है.....
ReplyDeleteसुन्दर रचना |
ReplyDeleteवाह, वर्षा का उल्लास छलक रहा है।
ReplyDeleteअति सुन्दर भाव विभोर करती हुई अनुपम प्रस्तुति.
ReplyDeleteआप के गीत में मधुर अलौकिक संगीत झंकृत होता है.
आपके ब्लॉग की चर्चा। यहाँ है, कृपया अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएं
ReplyDeleteमेघ मल्हार से भाव तरंगित हो रहे
ReplyDeleteमेघ मल्हार गाइये, रिमझिम फुहार से तृप्त हो जियें , यहाँ तो अभी इन्द्र देव की कृपा का टुकड़ा भी नहीं पंहुचा .कृत्रिम फुहारों से मन को बहला रहे है हम लोग . भेजिए जल्दी से हम लोगो की तरफ कुछ काले घुंघराले बदरवा .
ReplyDeleteआशीश जी ...आप काले घुंघराले बदरवा कह रहे हैं इसलिये नहीं आ रहे हैं ....कारे घुंघरारे बदरवा कहिये ...जल्दी आ जायेंगे ...:))
Deleteघनन घनन घिर घिर आये बदरा..
ReplyDeleteघिर घिर आये रे बदरिया....सावन के आने का आभास..
ReplyDeleteये बोल किसी शास्त्रीय संगीत में निबद्ध गीत के लिए आपने बनाया लगता है. बहुत सुंदर ध्वनियाँ उभरी हैं.
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
अखियन से मन तक उतराते ...
ReplyDeleteनैनन बन जाते कजरवा ...
मन में बजाते कहरवा ...
जीवन से सुर-ताल मिलाते ...
कुछ कह जाते ...कुछ सुन जाते ...
कुछ दे जाते ...कुछ ले जाते ..
भरमाते ...उड़ जाते ...
कारे मतवारे कजरारे बदरवा ....!!
अभी अभी रामगढ से घूमकर आया हूँ. आपकी रचना में भी मेघदूत की खुशबू का एहसास मिला .कथन और कथ्य वही ........
शीघ्र बरसात हो जाए,यहा तो गर्मी के मारे बुरा हाल है,
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन सुंदर गीत ,,,,,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
वाह ... बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत.....यहाँ दिल्ली में तो बुरा हाल है ।
ReplyDeleteवर्षा ऋतु का स्वागत करती मोहक रचना।
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर रचना
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बेहतरीन रचना
दंतैल हाथी से मुड़भेड़
सरगुजा के वनों की रोमांचक कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पढिए पेसल फ़ुरसती वार्ता,"ये तो बड़ा टोईंग है !!" ♥
♥सप्ताहांत की शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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आसमान में बदल छाते ही हमारे सूखे पड़े मन नाच उठते हैं !
ReplyDeleteसावन आये न आये जिया जब झूमे सावन है......सावन के आने का आभास..
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
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पी.एस. भाकुनी
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बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसांगीतिक अभिव्यक्ति श्रृंगार की संयोग में से झांकते वियोग की .बादल की मार्फ़त भावनाओं का उमडन घुमडन अभिव्यक्त हुआ है ,प्रीतम के परदेशवा होने की छिपी सी हूक भी है कहीं तो .
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
ReplyDelete_
वाह...!
ReplyDeleteसम्पूर्ण दृश्य जी उठा आपके शब्दों में!
मोह लिया मन को काले बदरवा ने..तनिक बरस भी गया...
ReplyDeleteवाह ये मतवारे बदरा ......
ReplyDeleteसुन्दर ...भीगी भीगी रचना..................
ReplyDeleteसराबोर हो गए हम...............
बरसन आये मोरे देस आज ...
ReplyDeleteकारे मतवारे घुँघरारे बदरवा ....!
वारिश का मौसम होता ही है सबको प्रसन्न कर देने वाला.
बहुत सुंदर कविता.
शीतल!
ReplyDeleteहृदय से आभार आप सभी का .......प्रभु से प्रार्थना है ...ये बदरा खूब छायें और पुरज़ोर बरसें ....
ReplyDeleteखूबसूरत!!
ReplyDeleteमुंबई में तो बारिश शुरू हो गयी, लेकिन दिल्ली अब भी गर्म है..
जल्दी से बारिश हो यहाँ तब ये कविता फिर से पढ़ने आऊंगा, अभी तो कविता पढ़ के जलन ही हो रही है और बारिश का इंतज़ार कर रहा हूँ :) :)
अब बस बरसे ये बेधड़क... कि कोई भी मन प्यासा न रहे... आती मानसून को इंगित सुन्दर रचना..
ReplyDeleteसादर
kare kare badal,sawan ke aana ka sandesh la reha hain. jhoola, thumri, geet gane ke liya hume bula rahe hain.
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