मैं किस बिध तुमको पाऊँ प्रभु..?
अब अखियन नीर बहाऊँ प्रभु ...
पग धरो श्याम मत बेर करो ...
मन मंदरवा सुधि-छाप धरो..
अब अंसुअन पांव पखारूँ प्रभु ...
मैं किस बिध तुमको पाऊँ प्रभु..?
मैं किस बिध तुमको पाऊँ प्रभु..?
मन का इकतारा बाज रहा ..
सुर बिरहा आकुल साज रहा ...
तुम कौन गली ....ऋतु बीत चली ....! |
मेरे हिरदय मधु प्रीत पली ...
तुम कौन गली ....ऋतु बीत चली ...
निज प्राण पखेरू निकसत हैं ...
मन सुमिरत वंदन गावत है ...
निज प्राण पखेरू निकसत हैं ...
मन सुमिरत वंदन गावत है ...
तरसत मन अब हरि दरसन दो ....
हरो पीर मेरी ...तर जाऊँ प्रभु ...!!
हरो पीर मेरी ...तर जाऊँ प्रभु ...!!
मैं किस बिध तुमको पाऊँ प्रभु..?
सुन्दर निवेदन!!
ReplyDeleteइस रचना की गेयता अद्भुत होगी..एक प्रयास तो प्रस्तुत कीजिये..
ReplyDeleteआभार आपकी शुभकामनाओं के लिये प्रवीण जी ....ज़रूर ...अब कोशिश करती हूँ ....रचना को सुर देना अपने आप मे एक अलग विधा है ....इसलिये थोड़ा समय लग रहा है ....मन मे है मेरे भी कि अपने लिखे हुए गीतों को स्वर देकर प्रस्तुत करूँ ...!!
Deleteमीरा सी व्याकुलता और समर्पण ...
ReplyDeleteबहुत बढिया!
ReplyDeleteकल 24/06/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत आभार यशवंत ...!!
Deleteप्रभु मिलन की छटपटाहट..मन की सच्ची व्याकुलता को बहुत खुबसूरत शब्दों में चित्रित किया है.....अनुपमा जी.. सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रार्थना
ReplyDelete:-)
मत व्याकुल हों....
ReplyDeleteऐसे प्यारी प्रार्थना प्रभु अवश्य सुनेंगे
सुन्दर रचना अनुपमा जी..........
सस्नेह.
निज प्राण पखेरू निकसत हैं ...
ReplyDeleteमन सुमिरत वंदन गावत है ...
तरसत मन अब हरि दरसन दो ....
हरो पीर मेरी ...तर जाऊँ प्रभु ...!!
भावमय करते शब्द ... उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार
प्रभु को पाने की भावपुर्ण अनुपम निवेदन,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
बहुत सुन्दर ..., प्रभुचरणोँ मेँ भावपूर्ण निवेदन ।
ReplyDelete..मुझसे भी आपने बड़े दिनों बाद प्रार्थना करवा ही दी !
ReplyDelete:)) कर भला सो हो भला ...!!
Deletebhakti bhaav me ram gaya man padh ke..viyog bhi hai..bhakti bhi...
ReplyDeleteसुंदर भक्ति गीत.
ReplyDeleteतरसत मन अब हरि दरसन दो ....
ReplyDeleteहरो पीर मेरी ...तर जाऊँ प्रभु ...!!
मन तडपत हरि दर्शन को आज ………बहुत सुन्दर भाव
बहुत आभार ...वंदना जी ...
Deleteजय हो ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteसच्चिदानंद की अनुभूति ,देते गीत , प्रवीण जी के स्वर में मेरा भी एक स्वर शामिल है .
ReplyDeleteआभार आशीश जी ...शुभकामनायें ज़ोर पकड़ रही हैं ...प्रभु कृपा हो ही जायेगी ...!!
Deleteमन तड़पत हरि दर्शन को आज...
ReplyDeleteव्याकुलता, अधीरता का अद्भुत गीत !!
विधि हेरत हेरत.. हे ! सखी..बस विधि होई गयी...
ReplyDeleteकितना सुन्दर यह गीत रचा
ReplyDeleteप्रभु तो भक्तन का मीत सदा
पढ़कर मन में यह बात उठी
सुर में यह धुन काहे न बजी
अनुपम स्वर में सुन पाऊँ प्रभु....!
आदरणीय अनुपमा जी,
आदरणीय प्रवीण ने जी सही कहा...
आप इसे गाकर अवश्य सुनाएँ....
सादर बधाई स्वीकारें इस सुन्दर सृजन के लिए।
हृदय से आभार संजय जी ...आ ही गई है मन मे अब गीतों को स्वर देने की बात ...शीघ्र ही इस पर कार्य प्रारम्भ करूगी ....!!
Deleteबहुत मनभावन भक्ति गीत ....
ReplyDeleteआप समर्पित रहें बस , प्रभु को आप नहीं अपितु प्रभु आपको पायेंगे |
ReplyDeleteप्रभु को पाने की लालसा एक सुन्दर भाव से सजा हुआ ......बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteप्रभु भक्ति के अद्भुत भाव.....
ReplyDeleteअब अखियन नीर बहाऊँ प्रभु ...
ReplyDeleteपग धरो श्याम मत बेर करो ...
मन मंदरवा सुधि-छाप धरो..
अब अंसुअन पांव पखारूँ प्रभु ..
bahut sundar praarthna.
.
मेरे हिरदय मधु प्रीत पली ...
ReplyDeleteतुम कौन गली ....ऋतु बीत चली ...
निज प्राण पखेरू निकसत हैं ...
मन सुमिरत वंदन गावत है ...
तरसत मन अब हरि दरसन दो ....
हरो पीर मेरी ...तर जाऊँ प्रभु ...!!
मैं किस बिध तुमको पाऊँ प्रभु..
bhawmay sundar bhakti se sani prarthana .
बहुत आभार शास्त्री जी ...!!
ReplyDeleteसुबह-सुबह इतना अच्छा भजन पढ़कर मन मुदित हो चला। यदि इसका गायन भी आपकी आवाज़ में होता, तो ....
ReplyDeleteवाह..दिल से निकलती प्रार्थना..बहुत ही सुन्दर...प्रभु को पाने की विध मिल जाये फिर क्या कहने....
ReplyDeleteमेरे हिरदय मधु प्रीत पली ...
ReplyDeleteतुम कौन गली ....ऋतु बीत चली ...
निज प्राण पखेरू निकसत हैं
.....सार्थकता लिए हुए सटीक अभिव्यक्ति ... आभार
नई पोस्ट .....मैं लिखता हूँ पर आपका स्वगत है
ankhiya hari darsha ko pyasi.....sundar prarthana.
ReplyDeleteसुंदर समर्पण भाव, सुंदर भजन सच्ची प्रार्थना.
ReplyDeleteशुभकामनायें.
सुंदर भजन।
ReplyDeleteकंठ दिये नहीं कोयल के...मैं किस विधि इसको पाऊँ प्रभु!
waah ...aabhaar:))
Deleteभक्ति भाव लिए सम्पूर्ण गीत
ReplyDeleteसमर्पित भाव .......बिल्कुल उस भजन की तरह "दरस बिन दूखण लागे नैन "
ReplyDeleteआभार
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ReplyDeleteबहुत आभार अजय जी ...आज आपके बुलेटिन में वाकई प्रभु प्रसाद मिल गया ...!!
Deleteहर पंक्ति के साथ बढ़ती व्याकुलता महसूसती रचना ......बहुत सुन्दर अनुपमाजी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सारस जी ...
Deleteतुम कौन गली ....ऋतु बीत चली ...
ReplyDeleteaanand aa gaya...!!
आप सभी गुणी जानो का हृदय से आभार ....
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