आज फिर चली जा रही हूँ ...
बढ़ी जा रही हूँ .....आस से संत्रास तक .....
खिँची खिँची ...
नदिया किनारे ....
कुछ यक्ष प्रश्न लिए ...
डूबता हुआ सूरज देखने ....
पंछी लौटते हुए .. ...अपने नीड़....
मेरे हृदय में भरी जाने क्या पीर ....
कहाँ है मेरी आँखों में नीर ....??
जवाब नहीं देती ....
दग्ध ....
सुलक्षण बुद्धि भी ..जैसे कुछ पल ....
आराम करना चाहती है .....!!
धीरे धीरे डूब गया है सूरज .....
भावनाओं का ......
गहन अंधकार से घिरी मैं ...
तम की शैया पर सोचूं ...
पलक कैसे झपकाऊँ ...?
दुस्तर प्रस्तार कहाँ से लाऊँ ...?
गहन अंधकार को भेद ...
संत्रास कैसे मिटाऊँ ....??
जीवन ज्योति किस विध पाउँ ..?
धीर धरूं ...धैर्य कि माला जपूँ..
गहन आराधन समय बिताऊँ ...
जो होगा प्रार्थना में दम ....
समय के साथ ...
मिट ही जायेगा .... ये तम.... !!
आस मैं मिटने नहीं दूँगी ....
संत्रास मैं रहने नहीं दूँगी .
होगी ही ...फिर होगी भोर ....
संस्कृति ...सभ्यता पर छाया घना कोहरा छंट जाएगा ...
विवेक हृदय द्वार खटखटाएगा .....
यदा यदा ही धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत .....
जन जन मानस मे कृष्ण बन ...
सवेरा ज़रूर आयेगा .....!!
आपकी प्रार्थना में दम है और साथ हमारा भी... पुनः
ReplyDeleteसवेरा जरुर आएगा ....
शुभकामनायें!
संस्कृति ...सभ्यता पर छाया घना कोहरा छंट जाएगा ...
ReplyDeleteविवेक हृदय द्वार खटखटाएगा .....
यदा यदा ही धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत .....
जन जन मानस मे कृष्ण बन ...
आएगा आयेगा पुनः ....
सवेरा ज़रूर आयेगा .....!!
उम्मीद पर दुनिया कायम है .... पर कब आएगा वो सवेरा ॥जब सब कुछ रसातल में पहुँच जाएगा ...? मन को सुकून देती रचना
सच है ॥उम्मीद प्रबल है दी .....प्रार्थना है भगवान से आगे सब अच्छा हो .....हमारी संस्कृति अब और गिरने से बच जाए .....वरना हम आने वाली पीढ़ी को क्या दे पाएंगे ....??दिन ब दिन इस तरह के हादसे ....टी.वी ,अखबार सब इन्हीं समाचारों से भरे रहते हैं .....बस ईश्वर से प्रार्थना है ...दामिनी की रक्षा करें ....
Deleteयदा यदा ही धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत .....
ReplyDeleteजन जन मानस मे कृष्ण बन ...
आएगा आयेगा पुनः ....
सवेरा ज़रूर आयेगा .....!!
....यही विश्वास अब बाकी है...बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
बिलकुल सही बात कही है और इसके बारे में संगीता जी और कैलाश जी की बात से सहमत हूँ .
ReplyDeleteयदा यदा ही धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत .....
ReplyDeleteजन जन मानस मे कृष्ण बन ...
आएगा आयेगा पुनः ....
सवेरा ज़रूर आयेगा .....!!
बेहतरीन अभिव्यक्ति,भावपूर्ण सुंदर रचना,,,,
recent post: वजूद,
खुबसूरत अभिवयक्ति...... .
ReplyDeleteउम्मीद पर तो दुनिया कायम है....
ReplyDeleteमगर असहाय महसूस करते हैं आज....उम्मीद टूटती सी जाती है....
सशक्त और आस जगाती रचना..
सस्नेह
अनु
आएगा आयेगा पुनः ....
ReplyDeleteसवेरा ज़रूर आयेगा बहुत खुबसूरत आस जगाती सुन्दर सशक्त रचना..आभार
आस यही है, हम बैठे हैं,
ReplyDeleteसूरज उगना चाहे जब भी।
ReplyDeleteधीरे धीरे डूब गया है सूरज .....
भावनाओं का ......
गहन अंधकार से घिरी मैं ...
तम की शैया पर सोचूं ...
पलक कैसे झपकाऊँ ...?
दुस्तर प्रस्तार कहाँ से लाऊँ ...?
गहन अंधकार को भेद ...
संत्रास कैसे मिटाऊँ ....??
मन को झकझोरती रचना
सवेरा ज़रूर आयेगा ...बिलकुल सही लिखा है.....साहिर ने कहा था...रात भर का मेहमान अँधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा. अगर पीछे का इतिहास देखा जाय, तो हिंसा या क्रूरता पहले कम नहीं थी. पर अभी भी बहुत कुछ होना है सभ्य समय के निर्माण के लिए. उम्मीद तो है ही और बेहतरी भी होगी जरूर.
ReplyDeleteनिराशा एवं वेदना के घनघोर तिमिर में आलोक की नन्हीं सी किरण बन सहलाती सी रचना ! आपकी प्रार्थना में मेरा स्वर भी सम्मिलित हो गया है स्वत: ही ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteरखती हूँ हर पाँव यही दृढ विश्वास लिए...
ReplyDeleteआस मैं मिटने नहीं दूँगी ....
ReplyDeleteसंत्रास मैं रहने नहीं दूँगी .
अति सुंदर..अंतर को प्रेरणा से भरते शब्द..
ये विश्वास बना रहे.........और हमे खुद भी आगे आना होगा ।
ReplyDeleteदरअसल आशा और उम्मीद विलंबित होने के कारण ही इन शब्दों पर से विश्वास उठने लगता है... वो सुबह कभी तो आयेगी सुनकर बहुत अच्छा लगता है... लेकिन कहीं से कोई किरण नहीं फूट रही..
ReplyDeleteएक मुहावरा कि जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड की तरह अब तो आशाओं के साथ भी यही लगने लगा है.. आपकी कविता फिर भी एक उम्मीद जगाती है!!
आस मैं मिटने नहीं दूँगी ....
Deleteसंत्रास मैं रहने नहीं दूँगी .
अभी तो संत्रास की पराकाष्ठा ही थी यह घटना ...!!फिलहाल कैसे उबरा जाये .....??कुछ क्षणों मे ही उस लड़की का जीवन तो नर्क हो गया ....जस्टिस अब क्या मिलेगा उसको ??संस्कृति सभ्यता की जड़ें इतनी गहरी हैं कि व्यापक रूप से देखा जाए तो इसे बहुत दुर्भाग्य पूर्ण कृत्य मान कर कुछ दिनों मे लोग भूल भी जाएंगे और जन आक्रोश जिस प्रकार उमड़ा है लोग इस घटना कि पुनरावृत्ति न हो इसके भरसक प्रयास करेंगे भी ...!!......निश्चित रूप से नया सवेरा तो आएगा ही .....किन्तु उस लड़की का क्या होगा यह सोच कर रूह कांप जाती है ....!!गहन आराधन उसी के लिए करती हूँ .......ईश्वर उसका भला करें .....
बहुत आभार सलिल जी अपने अमूल्य विचार देने के लिए ....
आभार शास्त्री जी ।
ReplyDeleteएक नई सुबह की शुरुवात अभी होनी बाकि है
ReplyDeleteउस सवेरे की आस में ही जिये जा रहे हैं।।। सुंदर प्रस्तुति।।
ReplyDeleteआयेगा वह सवेरा
ReplyDeleteजो मिटायेगा तिमिर घनेरा .
सामयिक और सटीक सुंदर भी ।
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार
ReplyDeleteदामिनी के लिए दो शब्द आस के और गहन आराधन मेरा .....आभार आप सभी का मेरी प्रार्थना के स्वरों को बल देने के लिए ...
ReplyDeleteमिट ही जायेगा .... ये तम.... !!
ReplyDeleteआस मैं मिटने नहीं दूँगी ....
संत्रास मैं रहने नहीं दूँगी .
आमीन !!
आज दूसरी बार नैराश्य भावना से परिपूर्ण कविती पढ़ रही हूँ
ReplyDeleteपहली कविता फाल्गुनी दीदी की पढ़ी
कैसी निराशा सी छाई थी .....मन मे आस कैसे बची रहे ....बस गहन प्रार्थना ही आस जागृत रख पाती है ....देखो ईश्वर रक्षा कर ही रहें हैं उसकी .....आगे भी करेंगे यही विश्वास है .....!!!!
Deleteबहुत आभार यशोदा ....!!
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