नदी की यात्रा ....समुद्र की ओर .....आत्मा की यात्रा, परमात्मा की ओर ....इसी भाव से पढ़िये ....धार बनी नदिया की ......
छवि मन भावे ...
नयन समावे ..
सूरतिया पिया की ...
बन बन .. ढूँढूँ ..
घन बन बिचरूं .....
धार बनी नदिया की .......
कठिन पंथ ...
ऋतु भी अलबेली ....
बिरहा मोहे सतावे ...
पीर घनेरी ...
जिया नहीं बस में ...
झर झर झर अकुलावे .....
पीर घनेरी ...
जिया नहीं बस में ...
झर झर झर अकुलावे .....
विपिन घने ,
मैं कित मुड़ जाऊँ ...
कौन जो राह सुझावे .....?
डगर चलत नित
बढ़ती हूँ........
निज वेग मोहे हुलसावे ...
मैं कित मुड़ जाऊँ ...
कौन जो राह सुझावे .....?
डगर चलत नित
बढ़ती हूँ........
निज वेग मोहे हुलसावे ...
अब..कौन गाँव है ....
कौन देस है ..
कौन नगरिया पिया की ....
बन बन .. ढूँढूँ ..
घन बन बिचरूं ...
धार बनी नदिया की .......
धार बनी नदिया की ....!!
मैं इक पल रुक ना पाऊँ....
मैं कल कल बहती छल छल बहती .....
बहती बहती जाऊँ....!!!!!!
I know not much .....in fact nothing ....!!O GOD .....!!Hold me and behold me as I tread THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE ...towards YOU ...THE OMNIPOTENT ...AND THE OMNIPRESENT ......!!!!!!
धार बनी नदिया की ....!!
मैं इक पल रुक ना पाऊँ....
मैं कल कल बहती छल छल बहती .....
बहती बहती जाऊँ....!!!!!!
I know not much .....in fact nothing ....!!O GOD .....!!Hold me and behold me as I tread THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE ...towards YOU ...THE OMNIPOTENT ...AND THE OMNIPRESENT ......!!!!!!
सुन्दर विचर और प्रेम की अन्हीनव यात्रा यक़ीनन मन मोहक है ।
ReplyDeleteanupama ji bahut sundar layatmakta shilp , shabdo ke moti ............dhara me bah gaya man . badhai
Deleteबहुत सुन्दर, प्रवाहमय, गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteज्यों धार बनी नदिया की पिया ऐसो बांह पसारे..अति सुन्दर कहा है .
ReplyDeleteसौम्य सुखद संक्षिप्त ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.........
ReplyDeleteपढ़ती गयी...गाती गयी...बहती गयी....
सस्नेह
अनु
बहुत सुन्दर गीत है...
ReplyDeleteनदियों की धार सी प्रवाहित...
गुनगुनाती हुई,, कोमल सी...
:-)
मैं इक पल रुक ना पाऊँ....
ReplyDeleteमैं कल कल बहती छल छल बहती .....
बहती बहती जाऊँ....
बहुत कोमल सी सुंदर रचना ....
recent post: बात न करो,
बहुत ही प्यारी कविता
ReplyDeleteमैं इक पल रुक ना पाऊँ....
ReplyDeleteमैं कल कल बहती छल छल बहती .....
बहती बहती जाऊँ.
जीवन का सन्देश देती प्रवाहमय रचना .....
मन भा गयी. एक उन्मुक्त एहसास दे गयी. सुन्दर कृति.
ReplyDeleteईश्वर प्राप्ति का सुगम मार्ग जो बहुत कठिन है .... यूं ही धार बन बहना कहाँ सहज है ? बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteकठिन पंथ ...
ReplyDeleteऋतु भी अलबेली ...
बिरहा मोहे सतावे ...
प्रेम ओर विरह ... दोनों रंगों का समावेश करती आलोकिक रचना ...
एक कोमल सी कविता
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति का भाव पक्ष बेहद उम्दा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteप्रेम और विरह का संजोग तो पुराना है और इसी विधा की सुंदर कविता. बधाई अनुपमा जी.
ReplyDeleteबेहतरीन।बहते रहना ही तो जीवन है।
ReplyDeleteसादर
देवेंद्र
मेरी नयी पोस्ट
कागज की कुछ नाव बनाकर उनको रोज बहा देता हूँ........
सलिल-प्रवाह सी कविता.. सुललित और सुपाठ्य!!
ReplyDeleteबहुत उम्दा!!शुभकामनाएँ.
ReplyDeletesach kahan anulata jee ne padhte pathe bahte chale gaye....:) khubsurat kal-kal pravah...karti rachna:)
ReplyDeleteमैं इक पल रुक ना पाऊँ....
ReplyDeleteमैं कल कल बहती छल छल बहती .....
बहती बहती जाऊँ....!!!!!!
अनुपम भावों का संगम है यह अभिव्यक्ति
नदी की धार सी ही अविरल प्रवाहमान बहुत ही सुन्दर रचना ! बहुत सारी शुभकामनाएं !
ReplyDeleteTranscedental!
ReplyDeleteविरह गीत!!
ReplyDeleteकठिन पंथ ...
ऋतु भी अलबेली ....
बिरहा मोहे सतावे ...
भावपूर्ण!!
बहुत सुंदर
ReplyDeleteअभिनव...
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत भाव..
ReplyDeletesundar abhivyakti.
ReplyDeleteबधाई सुंदर रचना के लिए !
ReplyDeleteबहुत प्यारी नदी के प्रवाह जैसी सुन्दर कविता वाह बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत ही शानदार ।
ReplyDeleteबूंद समाना समुंद में,सो कत हेरी जाए....
ReplyDeleteभाव और विचार सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त हैं इस खूबसूरत सांगीतिक बंदिश में .
ReplyDeleteवाह...धार बनी नादिया की...बहुत सुंदर रचना..भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteसमस्त गुणी जानो का हृदय से आभार .....
ReplyDeleteस्नेह एवं आशीर्वाद बनाए रखें ......!!!!
बहुत खूबसूरत अहसास
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