लिए हुए ,
नयनाभिराम आकृति ,
संजोय हुए
शब्द शब्द प्रकृति ,
गढ़ते हुए
जीवन के रंगों की झांकी ,
कृशानु (अग्नि ) सादृश्य
ओजपूर्ण सम्पृक्ति
नित्य नवपंथ प्रदर्शक
अनुभूति का प्रतिमान ,
सरसिज के
रूप लावण्य सा द्युतिमान
साथ मेरे सदा सदा अभिनीत ,
मेरा मन मेरा पालनहार !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएँ
ReplyDeleteवाह।मन को परिभाषित करती सुंदर कृति,बहुत शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसुंदर रचना अनुपमा जी। आपका मन सदा आपका पालनहार रहे, यही शुभकामना है।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteलिए हुए ,
ReplyDeleteनयनाभिराम आकृति ,
संजोय हुए
शब्द शब्द प्रकृति ,
बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteमन ही है सब सृष्टि का आधार...प्रकृति का सौंदर्य बोध भी उन्ही को होता है...मन जिनका पालनहार...बहुत खूब...👏👏👏
ReplyDeleteविश्व की आकृति मन में ही तो सिमटी है। सुन्दर कृतज्ञ स्वर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन,मन ही देवता मन ही ईश्वर ,सादर नमन आपको
ReplyDeleteजिसका मन स्वयं संगी अहि उसको किसी का साथ नहीं चाहिए ...
ReplyDeleteआत्म भी तो इश्वर ही है ...
सुन्दर और सुकोमल रचना, बधाई अनुपमा जी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteप्रकृति में रचा बसा मन । सुंदर अभिव्यक्ति ।
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