अपने मन...वतन
और संस्कारों की
एक मुट्ठी माटी....
हाथ में बटोर कर ...
एक मुट्ठी माटी....
हाथ में बटोर कर ...
समेट कर ...
कर ली बंद मुट्ठी ...
हाथ बंद मुट्ठी ...
पैर जीवन पगडण्डी पर ...
चल रही है अनवरत ..जीवन यात्रा ...
मुझ पर ....
भीगी सी माटी....
सोंधी सी खुशबू ...
देखते ही देखते ...
खिल गयी कुछ कोमल कोपलें ...
समेट ली थी माटी ...
अब सहेजना है ...
इन्हीं कोमल कोपलों का जीवन ...!!!!!!!!!!!!
दीपोत्सव पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें .......
शुभ ज्योति...नवल ज्योति....
ज्यों ...ज्यों ...
ज्यों ...ज्यों ...
बिखेरे अपनी कीर्ति....
बनी रहे परस्पर सबमे स्नेह और प्रीती ...!!
इसी भावना से एक क्षमा याचना है कि कुछ दिनों से अपने गायन के सिलसिले में उलझी रही और ब्लोगिंग से दूर रही |अब पुनः अपने देश वापस आने पर कविताओं का सफ़र जारी रहेगा .... अपने विचारों से अवगत कराते रहिएगा ....वही उर्जा कुछ नया लिखने को प्रेरित करती है ...!!आभार...
यही हम सबकी ऊर्जा का स्रोत है।
ReplyDeleteप्रकाशोत्सव की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअब आपकी रचनाओं का हमें पठन सुख मिलता रहेगा, खुशी की बात है।
बहुत सुन्दर लगी ये पोस्ट.........स्वागत है आपका |
ReplyDeleteअपने मन...वतन
ReplyDeleteऔर संस्कारों की
एक मुट्ठी माटी....
हाथ में बटोर कर ...
समेट कर ...
कर ली बंद मुट्ठी ...बहुत ही खुबसूरत भाव से रची रचना....
देखते ही देखते ...
ReplyDeleteखिल गयी कुछ कोमल कोपलें ...
समेट ली थी माटी ...
अब सहेजना है ...
इन्हीं कोमल कोपलों का जीवन ...... मेरी शुभकामनायें हैं खाद की तरह
देखते ही देखते ...
ReplyDeleteखिल गयी कुछ कोमल कोपलें ...
समेट ली थी माटी ...
अब सहेजना है ...
इन्हीं कोमल कोपलों का जीवन ...!!!!!!!!!!!!
सुन्दर प्रस्तुति ...दीपोत्सव कि शुभकामनायें
अनोखा
ReplyDeleteवाह क्या बात है
अनोखी पोस्ट
ReplyDeleteआभार
आप ही शब्दों में
दीपोत्सव पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें .......
शुभ ज्योति...नवल ज्योति....
ज्यों ...ज्यों ...
बिखेरे अपनी कीर्ति.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteकल 28/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर.... शुभकामनायें आपको भी....
ReplyDeleteपड़ी कुछ वर्षा की बूँदें.....
ReplyDeleteमुझ पर ....
भीगी सी माटी....
सोंधी सी खुशबू ...
बहुत ही सुंदर...
सुन्दर
ReplyDeletehttp://www.poeticprakash.com/
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteप्रकाशोत्सव की शुभकामनाएं.
आपको भी दीपावली की शुभकामनायें... आपकी कमी सचमुच खल रही थी.
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या ...बधाई सहित शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteअपनी माटी की सोंधी खुशबू हमेशा हमें जीवंत करती है. हम सब कोंपलें हैं और जब तक अपनी माटी से जुड़े हैं तब तक जीवित हैं. कोंपलों को सहेजना है तो हमें माटी को भी सहेजते रहना होगा,उसे समय से सिंचित करते रहना होगा .
ReplyDeleteदेश से दूर होने के समय के अपने भावों को आपने बड़े ही सुन्दर ढंग से संजोया है इन पंक्तियों में.
बहुत सुन्दर ख्याल्।
ReplyDeleteदीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनायें ......
ReplyDeletebahot achchi lagi......ye kavita.
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें .
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत .. शुभकामना..
ReplyDeleteआप सभी की शुभकामनाओं के लिए ह्रदय से आभार ...!!
ReplyDeleteरचना पसंद करने के लिए भी आभार ...!!