मैं ...अभी तो ..
लेने का हिस्सा हूँ ..
लेती ही रहती हूँ..
जग से ...!!
जग में रहकर ...
जग से हटकर ...
जग को देकर ...
कुछ देने का किस्सा बनूँ....
तो जी लूँ कुछ दिन ...!!
अरुण की स्वर्णिम आभा सी
निखर सकूं ..
गुलमोहर के मोहक रंगों सी ..
निखर सकूँ ..
कल-कल , सरिता के शीतल जल सी..
बिखर सकूँ...
मदमाती, मस्त पवन के झोंखे सी ..
बिखर सकूं ..
रेगिस्तान में फैली हुई स्वच्छ रेत सी
बिखर सकूँ ..
नम आँखों में बसते ख्वाबों सी ..
बिखर सकूँ..
सप्त सुरों के सरगम सी ..
निखर सकूँ ...बिखर सकूँ ...
कुमुदिनी की पंखुड़ी सी ..
निखर सकूँ..बिखर सकूँ..
निखर सकूँ ..बिखर सकूँ ..इस तरह तो ......?
.....तो जी लूँ कुछ दिन ...!!
I know not much.....in fact nothing...............!
O GOD...!!Hold me and behold me as I tread ..THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE ...towards ...
YOU....THE OMNIPRESENT.....!!!!!!
लेने का हिस्सा हूँ ..
लेती ही रहती हूँ..
जग से ...!!
जग में रहकर ...
जग से हटकर ...
जग को देकर ...
कुछ देने का किस्सा बनूँ....
तो जी लूँ कुछ दिन ...!!
अरुण की स्वर्णिम आभा सी
निखर सकूं ..
गुलमोहर के मोहक रंगों सी ..
निखर सकूँ ..
कल-कल , सरिता के शीतल जल सी..
बिखर सकूँ...
मदमाती, मस्त पवन के झोंखे सी ..
बिखर सकूं ..
रेगिस्तान में फैली हुई स्वच्छ रेत सी
बिखर सकूँ ..
नम आँखों में बसते ख्वाबों सी ..
बिखर सकूँ..
सप्त सुरों के सरगम सी ..
निखर सकूँ ...बिखर सकूँ ...
कुमुदिनी की पंखुड़ी सी ..
निखर सकूँ..बिखर सकूँ..
निखर सकूँ ..बिखर सकूँ ..इस तरह तो ......?
.....तो जी लूँ कुछ दिन ...!!
I know not much.....in fact nothing...............!
O GOD...!!Hold me and behold me as I tread ..THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE ...towards ...
YOU....THE OMNIPRESENT.....!!!!!!
जग में रहकर ...
ReplyDeleteजग से हटकर ...
जग को देकर ...
कुछ देने का किस्सा बनूँ...
अति सुंदर ...यही तो जीना है ....
वाह ! अति सुंदर...
ReplyDeleteकोयल सा चहक सकूँ,
इत्र सा महक सकूँ!!
जीने, बढ़ने, फलने-फूलने की कामनाओं से भरपूर कविता बहुत ही सुंदर बन पड़ी है. चित्र भावों को रँग देते हैं.
ReplyDeletedeker hi jiya jaa sakta hai...
ReplyDeleteक्या कहने, बहुत सुंदर
ReplyDeleteरेगिस्तान में फैली हुई स्वच्छ रेत सी
बिखर सकूँ ..
नम आँखों में बसते ख्वाबों सी ..
बिखर सकूँ.
बहुत सुंदर भाव ! अब मंजिल दूर नहीं...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कविता।
ReplyDeleteसादर
बहुत क्खूब ..क्या जज्बा है ..सलाम आपकी सोच को.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत है ख्वाहिश..........
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। :-)
ReplyDeleteजग में रहकर ...
ReplyDeleteजग से हटकर ...
जग को देकर ...
कुछ देने का किस्सा बनूँ....
तो जी लूँ कुछ दिन ...!!
सुंदर सोच की सार्थक अभिव्यक्ति...
बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति ..
ReplyDeleteसप्त सुरों के सरगम सी ..
ReplyDeleteनिखर सकूँ ...बिखर सकूँ ...
कुमुदिनी की पंखुड़ी सी ..
निखर सकूँ..बिखर सकूँ....बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति ...
विकास के विचार पल्लवित करने से व्यक्तित्व में निखार आता ही है।
ReplyDeleteकुछ देने का किस्सा बनूँ....
ReplyDeleteतो जी लूँ कुछ दिन ...!!
इस भाव को नमन!
खूबसूरत भावों की माला....
ReplyDeleteअप्रतिम रचना...
सादर बधाई...
aap bhi hissa ban sakti hain ise kuchh dene ka...is dharti ko pollution se bacha kar...dharm ko badha kar...pyar baant kar......etc.etc.
ReplyDeletesunder vicharneey kriti.
यही है जीवन की सार्थकता । हम पहले २५ वर्ष इस समाज से कुछ न कुछ लेते रहते हैं और बाद के पच्चीस भी बीच के पच्चीस में ही हम सक्षम और सामर्थ्यवान होते हैं तो करते चलें, बिखरते चलें, निखरते चलें ।
ReplyDeleteसुंदर कविता ।
इस बिखरने और निखरने में जो आनन्द है वह उत्क्रुष्टता आती है जिसकी चाह हर स्रुजनकार को होती है।
ReplyDeleteसुन्दर स्रजन, ख़ूबसूरत भाव, शुभकामनाएं .
ReplyDeleteसुंदर कविता ।
ReplyDeleteइस तरह तो कुछ दिन जी लूं...
ReplyDeleteलिया ही लिया अब कुछ दे दूं ...
बहुत प्यारी सोच और कविता !
वाह...क्या बात कही...
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत ही सुन्दर....
सत्य है, केवल लेकर ऋणी रह चले जाने में जन्म की क्या सार्थकता...लेने के पश्चात कुछ देकर बांटकर वापस जाए तो कोई बात बने...
मोह लिया आपकी रचना ने...
बहुत सुन्दर ,गहन अनुभूति...
ReplyDeleteadhyatm se lipti hui kavitaon ka rang kabhi feeka nahin padta . apki sabhi rachnayen bahut hi khoobsoorat hain , aapko saprem abhar.
ReplyDeletebhaut hi khubsurat bhaavo se saji rachna...
ReplyDeleteबिखर कर निखरना आनंद का स्रोत बन जाता है . जीवन सफल हो जाता है.
ReplyDeleteसप्त सुरों के सरगम सी ..
ReplyDeleteनिखर सकूँ ...बिखर सकूँ ...
कुमुदिनी की पंखुड़ी सी ..
निखर सकूँ..बिखर सकूँ..
अनुपम और अनमोल भाव हैं आपके.
अब तो आप निखरकर हम सभी को
भी निखार रहीं है जी.
आपकी सुन्दर पोस्ट पढकर मन निहाल
हो जाता है,अनुपमा जी.
lene ki chahat hae to arpan ka bhav bhi hae
ReplyDeletesaat suron ki sargam man me sapnon me arun ki aabha bhi hae.
nikhri rahen chandani se man ki galiyan teri
udane ka chav hae tujhmen to bikharne andaj bhi hae.
लेने की चाहत है तो अर्पण का भाव भी है
ReplyDeleteसात सुरों की सरगम मन में सपनों में अरुण की आभा भी है .
निखरी रहें चांदनी से मन की गलियां तेरी
उड़ने का चाव है तुझमें तो बिखरने का अंदाज भी है .
संगीता जी आपके खूबसूरत भावों से भर गया आज मेरा मन ....आपका स्नेह है जो आप ये कह रहीं हैं ...मैं तो कुछ भी नहीं हूँ ...
आप स्वयं भी हिंदी में लिख सकतीं हैं मेरे ब्लॉग पर ,ऊपर देखिये ...हिंदी में लिखें .....ऐसा लिखा है ......
मैंने आपका कमेन्ट हिंदी में कर के पोस्ट किया है ...
आपके इतने प्रेम के लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ ....
अनुपमा जी
ReplyDeleteआपकी इस कविता ने मुझे जीवन तथा अध्यात्म की गहरी अनुभूति से भर दिया . आपका लेखन बहुत ही ताजगी से भरा है ..
बधाई !!
आभार
विजय
-----------
कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html
सार्थक प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । आभार.।
ReplyDeleteक्या बात है । बहुत ही भाव विभोर कर दिया आपने अपनी कविता के थाप से । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है ।
ReplyDeleteअरुण की स्वर्णिम आभा सी
ReplyDeleteनिखर सकूं ..
गुलमोहर के मोहक रंगों सी ..
निखर सकूँ ..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सार्थक ,बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअनुपमा जी ,कविता के लिये मेरी बधाई स्वीकार करें .
सुन्दर भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteमेरे नई पोस्ट में स्वागत है
" बहुत ही अच्छे विचार,अति सुंदर अभिवक्ति ! "
ReplyDeleteआप सभी का बहुत आभार ....
ReplyDeleteअच्छी भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteबधाई
आशा
नमस्कार...
ReplyDeleteजग में रहकर ...
जग से हटकर ...
जग को देकर ...
कुछ देने का किस्सा बनूँ....
तो जी लूँ कुछ दिन ...!!
आपके संकल्प को नमन....
काश सभी ऐसा ही सोचते...
दीपक....
कुछ देने का किस्सा बनूँ....
ReplyDeleteतो जी लूँ कुछ दिन ...!!
....
जी दीदी जीवन तो सच में तभी है !
कल-कल , सरिता के शीतल जल सी..
ReplyDeleteबिखर सकूँ...
मदमाती, मस्त पवन के झोंखे सी ..
बिखर सकूं ..
khoobsoorat abhivykti ...abhar.
dear aupama ji aapki sari kratiya hume bhut hi pasand aayi or hum aage bhi chahenge ki aap aise hi likhti rahe...mai aapki in kritiyo se apne fb page jo hindi ko bachne or savarne ke liye h usme sanjona chahta hu..kripya is bare me me sujhav awashya de.....shyam12372@gmail.com
ReplyDeletedear anupama ji aapki sabhi kritiya maine padhi or sabhi bhut achi lagi...mai chahunga ki aap samay nikal kar aise hi likhti rahe or hindi ka naam jagat me roshan karti rhe..mai aapki in kritiyo dwara apne ek facebook page http://www.facebook.com/hindihhumvatanh.yehindostahumara jo hindi ko bache,or savarne ke liye h ,ko sajana chata hu ..kripya is bar me mujhe sujhaw avashya de..or agar aapko acha lage to kripya page ko bhi join kare..
ReplyDeleteshyam12372@gmail.com
dhanyawad!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 06-12 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete....
सफ़ेद चादर ..... डर मत मन ... आज की नयी पुरानी हलचल में ....संगीता स्वरूप
. .
बहुत आभार संगीता दी ....
Deleteखूबसूरत भाव. कविता काफी अच्छी लगी.
ReplyDeleteअरुण की स्वर्णिम आभा सी
ReplyDeleteनिखर सकूं ..
गुलमोहर के मोहक रंगों सी ..
निखर सकूँ ..
आपकी सारी मनोकामना पूरी हो :))
शुभकामनायें !!
bahut sundar abhivyakti waah
ReplyDeleteअति सुन्दर..
ReplyDelete:) सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव .....
ReplyDelete