उर से -
आग लक्ष्य की ..
कभी बुझी नहीं .....
इन राहों पर .. मैं ..
इक पल भी ..कभी रुकी नहीं ......
पथरीले रास्तों पर चलते चलते ...
रिसने लगा खून .....
चलती रही मैं ...अनवरत ...
मूँद कर नयन ...एकाग्रचित्त ...
सुरों की माला जपती .......
स्वयं को बूझती...
फिर भी ...
स्वयं से अपरिचित ....!!
बीतता रहा समय ...
चलती रही मैं ...
अब ..धीरे धीरे होता जाता है ...
कुछ आभास तुम्हारी उपस्थिती का ...
और कुछ विश्वास मेरी प्रतीति का ... ...
हवा में फैली ..
तुम्हारी खुशबू है ...!!
जानती हूँ...
तुम्हें पहचानती हूँ ...
अनुनेह मेरा ग्रहण करोगे ...
निर्मोही नहीं हो तुम ...
क्योंकि जानते हो ...
दर्शन पाए बिना तुम्हारे ....
नयनो की प्यास बुझेगी नहीं ...
अंतर्मन की ...
ये ज्वाला बुझेगी नहीं ....!!
अपने भक्तों को
छटपटाता देख सकते हो .....
तो जलने दो मुझे ...
युगों युगों तक ऐसे ही .....
दर्शन पाए बिना तुम्हारे ...
तृषा से व्याकुल ...
जलती रहेगी मेरी काया ....!!
तपन जिया की बन के ...
प्रकट हो ....
हे प्रभु ...दर्शन दो ....!!
ज्ञान से पथ प्रशस्त करो ..
भव तार दो ...!!
दर्शन पाए बिना तुम्हारे ....
ReplyDeleteनयनो की प्यास बुझेगी नहीं ...
अंतर्मन की ...
ये ज्वाला बुझेगी नहीं ...
सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...अनुपमा जी,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteआभार ||
शुभकामनाये ||
भव सागर पार करने के लिए..खुद को पाने के लिए..उसमें डूबना ज़रूरी है..
ReplyDeleteईश्वर पर बहुत आस्था है मेरी ....आपके द्वारा आज प्रभु ने संदेसा भेजा है ....कैसे आभार प्रकट करूँ आपका ....!!
Deleteरह रहकर धधक उठती है वह आग, बहुधा सोने के पहले।
ReplyDeleteबिलकुल ठीक .....क्योंकि जगा रहता है अंतर्मन ....लगन इसी को कहते हैं ...शायद ...!!
Deleteसच्चिदानंद की मार्ग में एक और पुष्पांजलि . सदह्रदय की पुकार , दर्शन तो तारणहार.
ReplyDeleteआपका ह्रदय से आभार आशीष जी ...
Deleteअनूठे शब्द और अद्भुत भाव से सजी इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteनीरज
दर्शन पाए बिना तुम्हारे ....
ReplyDeleteनयनो की प्यास बुझेगी नहीं ...
अंतर्मन की ...
ये ज्वाला बुझेगी नहीं ....!!
अनुपम भाव संयोजन ... लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
उर में यह आग जलती रहे , तभी संभव है विजय
ReplyDeleteसुन्दर भाव...सुन्दर कृति....
ReplyDeleteपरमात्मा प्राप्ति की एक वहिर्मुखी यात्रा है और एक अंतर्मुखी.. आपने वहिर्मुखी यात्रा का वर्णन किया है.. वह मार्ग कर्म का है, ऐसा भगवान कृष्ण ने गीता में बताया है. परमात्मा की उपस्थिति को अनुभव करते हुए और अपने कर्म में निष्काम भाव से रत रहते हुए, परमात्मा की प्राप्ति. नहु सुन्दर रचना!!
ReplyDeleteख़ूबसूरत रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की १५० वीं पोस्ट पर पधारें और अब तक मेरी काव्य यात्रा पर अपनी राय दें, आभारी होऊंगा .
bahut achcha likhtin hain aap.....
ReplyDeleteअब ..धीरे धीरे होता जाता है ...
ReplyDeleteकुछ आभास तुम्हारी उपस्थिती का ...
और कुछ विश्वास मेरी प्रतीति का ... ...
बहुत सुन्दर ये अहसास यूँ ही जगा रहे ।
परमात्मा की प्राप्ति अंतर्मुखी यात्रा सुन्दर अहसास|
ReplyDeleteबीतता रहा समय ...
ReplyDeleteचलती रही मैं ...
अब ..धीरे धीरे होता जाता है ...
कुछ आभास तुम्हारी उपस्थिती का ...
और कुछ विश्वास मेरी प्रतीति का ... .
यह विश्वास बना रहे.. बहुत बहुत शुभकामनायें...
अंतर्मन से उठते भाव ...बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteबहुत आभार शास्त्री जी ...!!
ReplyDeleteसुन्दर एहसास कि कविता...
ReplyDeletebahut sundar likha hai
ReplyDeleteहवा में फैली ..
ReplyDeleteतुम्हारी खुशबू है ...!!
जानती हूँ...
तुम्हें पहचानती हूँ ...
अनुनेह मेरा ग्रहण करोगे ...
ईश्वर के प्रति मन में उठे भाव को जिस सहजता अपनत्व,समर्पण से आप ने अपनी कविता में व्यक्त किया है उससे मन भाव विभोर हो गया ,
prabhu darshan ko tarasti mragmareechika hai yeh kaya bhakti bhaavabhivyakti bahut sundar post.
ReplyDeleteहे प्रभु ...दर्शन दो ....!!
ReplyDeleteज्ञान से पथ प्रशस्त करो ..
भव तार दो ...!!
Yah khyal man me roz hi aata hai.... sunder, ati sunder
हवा में फैली ..
ReplyDeleteतुम्हारी खुशबू है ...!!
जानती हूँ...
तुम्हें पहचानती हूँ ...
...बिलकुल ठीक क्यूंकि इसे पहचाने बिना आगे बढ़ना असंभव है!
इन स्नेहिल वचनों को वह प्राप्त हो, जिसकी आकांक्षा है।
ReplyDeleteमधुरिम!
Bahut hi Sundar prastuti. Mere post par aapka intazar rahega. Dhanyavad.
ReplyDeleteकभी कभी कुछ ऐसे ही ख्याल मेरे मन में भी आते हैं..
ReplyDeleteकविता बेहद खूबसूरत है :)
भगवन पर तो आपकी ही तरह मेरा भी बहुत विश्वास है!!
आस्था और शब्दों से भावों की सुन्दर प्रस्तुति | परम शक्ति ही हमें उर्जावान बनाये रखती है |
ReplyDeleteकण कण में प्रभु है ...सुंदर रचना ...
ReplyDeleteप्रभु नमन ...!!
ReplyDeleteआप सभी का ह्रदय से आभार मेरे अंतर्मन कि प्रार्थना में आप जुड़े .........!!