रे मन पथिक ..रसिक ..अलबेला ....
झूम-झूम चलता ......
..रस लेता ...
मकरंद मंद-मंद मुस्काता ...
बुनता जाता ताना-बना ...
अद्वैत ..
तीन लोक ..पञ्च तत्व ...सप्त सुर ...नवल रस ...!!
गुन गुन रमता जाता है मस्ताना ...
जग से अनजाना ...
छन-छन ,राग ,अनुराग...
स्वर ...अलंकार .....!!
बढ़ता चल ...करता चल ...
अलंकृत ....विभूषित.....मन को ..
राग से ,अनुराग से ..असंख्य प्रकार ...!!
सृष्टि के सौरभ से ...स्वयं को ....
मन रंग ,रंग ,रंग ले .
सँवर जा भाँति-भाँति ले ....
भर-भर ले ,झर-झर दे ....
...धन-धन भाग सुहाग ...
...रस रंग सुभग सुभाग ......!!
छन-छन ,राग ,अनुराग...
ReplyDeleteस्वर ...अलंकार .....!!
बढ़ता चल ...करता चल ...
अलंकृत ....विभूषित.....मन को ..
राग से ,अनुराग से ..असंख्य प्रकार ...
सुंदर पंक्तियाँ .........
मन की चंचलता का बहुत सुंदर चित्रण किया आपने अपनी प्रस्तुति में
अलबेली रचना ..झुमाती हुई..
ReplyDeleteवाह ! ! ! ! ! बहुत खूब अनुपमा जी
ReplyDeleteसुंदर रचना,बेहतरीन भाव प्रस्तुति,....
MY RECENT POST ...फुहार....: बस! काम इतना करें....
सृष्टि के सौरभ से ...स्वयं को ....
ReplyDeleteमन रंग ,रंग ,रंग ले ....
पावन आवाहन... सुंदर कृति....
सादर।
शीतल मंद बयार सा गीत.
ReplyDeleteपढ़ा, तो लगा कानों में कुछ बजा.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
एक सुमधुर गीत जैसी रचना...सुन्दर!!
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुंदर गीत है……… आभार
ReplyDeleteमनमोहक भाव.....
ReplyDeleteक्या बात है...!!
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
प्रकुति से ज्ञान के रस को भर लेना चाहिए। भरे बादल और फले वृक्ष नीचे झुके रहते हैं सज्जन ज्ञान और धन पाकर विनम्र बनते हैं.
ReplyDeleteमन के रंग बरसा दिये ... अनुपम अलंकारों से सुसज्जित रचना बहुत सुंदर लगी
ReplyDeleteछन-छन ,राग ,अनुराग...
ReplyDeleteस्वर ...अलंकार .....!!
बढ़ता चल ...करता चल ...
अलंकृत ....विभूषित.....मन को ..
राग से ,अनुराग से ..असंख्य प्रकार ...
।बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा धन्यवाद .
albeli rachna ..bahut sundar...prakriti ke rangon se bharpoor
ReplyDeleteprakriti se rango se bharpoor albeli rachna
ReplyDeleteप्रकृति का सौन्दर्य अभिभूत करता है।
ReplyDeleteसुंदर रचना,ह्रदयस्पर्शी पंकितयां ....
ReplyDeleteसृष्टि के सौरभ से हमने तो अपना तन मन रंग लिया अनुपमाजी..अनुपम भाव..सुन्दर...
ReplyDeleteखुबसूरत शब्दों से सुसज्ज्ति मनभावन प्रस्तुति हेतु आभार.............
ReplyDeletebadhiya prastuti.
ReplyDeleteखन खानाता , राग अनुराग लिए एक सुंदर गीत !
ReplyDeleteछन-छन ,राग ,अनुराग...
ReplyDeleteस्वर ...अलंकार .....!!
बढ़ता चल ...करता चल ...
अलंकृत ....विभूषित.....मन को ..
राग से ,अनुराग से ..असंख्य प्रकार ...!!
सौन्दर्य रस से परिपूर्ण भाव
स्वरों की नाव पर अबाध गतिसे बहती कविता ....प्रवाहमयी ..सुन्दर !
ReplyDeleteगीत रुपी ये पोस्ट शानदार है ।
ReplyDeleteस्वरों की नाव पर अबाध गतिसे बहती कविता ....प्रवाहमयी ..सुन्दर !
ReplyDeleteनिर्बाध गति से बहती धारा।
ReplyDeleteउछाह उमंग नव-स्वर :)
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत!
ReplyDeleteसादर
प्रकृति के रंगों को संगीत में डुबोकर , अनुपम कृति का रसास्वादन करने का मौका दिया आपने . आपकी कविताओ में संगीत और भाव पक्ष दोनों भी प्रबल होते है . जो बात इस जगह है और कही पे नहीं .
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट लेखन ।
ReplyDeleteमन अलबेला ... वाह ..
ReplyDeletebahut khubsurat shabd:)
ReplyDeleteअनुपमा जी, नमस्कार. बारामासा की हमराही बनने और मार्गदर्शन के लिए आपका हार्दिक आभार. आपका स्नेह इसी भांति बना रहेगा, यही कामना है. पुनः आभार !
ReplyDeleteइसका तो पॉडकास्ट शास्त्रीय संगीत के साथ सुनने में आनंद आता। बहुत सुंदर।
ReplyDeletehello Anupama mam !!
ReplyDeletethanks 4 visiting me and giving me the opportunity to land here :)
Lovely blog u have..
Awesome expressions in above lines... the naughtiness and curiosity of "MAN" is fantastically expressed !!
Wish to c u more at Random Scribblings :)
सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDelete'मन पथिक' - भ्रमर सा डोलता .. बगियाँ में. सुन्दर - भावपूर्ण कविता - सादर.
ReplyDelete'मन पथिक' - भ्रमर सा डोलता .. बगियाँ में. सुन्दर - भावपूर्ण कविता -सादर.
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत आभार ...इस मन पथिक के भाव पर आपने अपने विचार दिए ...
ReplyDeleteअपना स्नेह ...अपना आशीर्वाद बनाये रखें ....!!
बहुत बढ़िया अनुपम रचना,सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....अनुपमा जी बधाई
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
सुंदर भाव,बेहतरीन अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअलंकार-संयोजन ऐसा है मानो झर-झर झरना बहता हो।
ReplyDeleteकल 16/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
मनभावन भावों से युक्त सुन्दर गीत !!
ReplyDelete