Pied cuckoo... |
चातक की प्यास लिये ...
साध ..रे मन साध ....साध ...!! |
ताक रहा है आसमान ...!!
रे मन ..कोमल रिशब (रे)...साध रहा ...
देख देख घनघोर घटा ....
पावन मधु रस तरस रहा ...
आरत सी भावना लिये ...
अनुराग की साधना लिये .....
स्वाति...स्वाति ....अब बरसो ...भी .. |
कुछ बह सा रहा है मन ...
हृदय के तार झंकृत कर ..
अनहद नाद सा ...
चातक की प्यास लिये ...
स्वाति की आस लिये ...
ताक रहा है आसमान ...
कुछ कह सा रहा है मन ....!!
अब करता मनुहार ...
री बूंद बरस जा मोरे मन द्वार ..
गंगा ना जानुँ ...जमुना ना जानुँ ...
नित घट-घट बिचरन नाहिं जानुँ ...
प्रेम रस ....
बूंद बूंद स्वाति बरस.....
हृद सील तोष पाउँ ...
क्षुधा मिटाऊँ....मैं तर जाऊँ ...!!
मैं तर जाऊँ ...!!
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प्रभु लीला का एक अद्भुत उदाहरण .....
चातक का स्वर रिशब(रे) होता है ऐसा संगीत शास्त्रों मे कहा गया है |और चतक सिर्फ वर्षा का जल पी कर ही अपनी प्यास बुझाता है अन्य पानी पीता ही नहीं |पूरे साल वर्षा की बाट जोहता है ....!!स्वाति नक्षत्र मे जब वर्षा पड़ती है ....चोंच खोल वही पानी पीता है ........बस मनो अमृत ही गृहण करता है ....
chatak ki pukar ab shayad ishwar sun raha hai .......bahut sunder
ReplyDeleteboond boond swati baras.........bahut hi sundar rachna hai
ReplyDeletetab to jaldi barso barkha rani......
ReplyDeleteसुन्दर चित्रमयी प्रस्तुति!!
ReplyDeleteप्रेम रस ....
ReplyDeleteबूंद बूंद स्वाति बरस.....
हृद सील तोष पाउँ ...
क्षुधा मिटाऊँ....मैं तर जाऊँ ...!!
मैं तर जाऊँ ...!!
आस पूरी हो,,,,,बरखा रानी जरा जमकर बरसो,,,,,
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
एक बार फिर आपने सिद्ध कर दिया कि काव्य में यदि संगीत के स्वर बिम्ब बनकर प्रविष्ट हों तो अद्भुत प्रभाव उत्पन्न होते हैं। आपकी रचना की स्वाति बूंद ने मन चातक को हर्षित किया।
ReplyDeleteसंगीत और कविता एक साथ पढ़ने को मिलती है आपके ब्लॉग पर.बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत ही सरस, मधुर और लयबद्ध रचना ! प्रकृति के उपमानों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है ! मन को हर्षित कर गयी आपकी रचना ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteमन रूपी चातक बूंद बूंद की आस करता हुआ ...बहुत सुंदर बिम्ब और सुंदर रचना ...
ReplyDeleteअब करता मनुहार ...
ReplyDeleteरी बूंद बरस जा मोरे मन द्वार ..
गंगा ना जानुँ ...जमुना ना जानुँ ...
नित घट-घट बिचरन नाहिं जानुँ ...
रे निर्मल जल .....
प्रेम रस ....
बूंद बूंद स्वाति बरस.....
हृद सील तोष पाउँ ...
क्षुधा मिटाऊँ....मैं तर जाऊँ ...!!
मैं तर जाऊँ ...!!
कोमल भाव संसिक्त प्रस्तुति . ......वीरुभाई परदेसिया .
आपकी कविता की आत्मा, सुरों के साथ संतृप्त विलयन बनाती है . ऐसे लगता है जैसे कविता नहीं हम परम पिता की उपस्थिति का आभास करते हो . चातक की साधना , उसकी अदम्य लालसा , बरसात के पानी से प्यास बुझाने की . मनुष्य को जिजीविषा का पाठ पढ़ाती है . हम कविता पढ़ के अनुगृहित होते है . आभार .
ReplyDeleteसुंदर भाव सम्प्रेषण ...आभार
ReplyDeleteचातक सा मन ... शब्दों के घूंट पीकर चलता है ....
ReplyDeleteसंगीत और कविता का सुन्दर संगम देखने को मिला..सुकोमल भाव लिए सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लयबद्ध रचना...
ReplyDeleteभावनाओं का अनूठा संगम ... उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार
ReplyDeletenice poem with valuable information!!!!!!
ReplyDeletenice poem with valuable information!!!!!!
ReplyDeleteबहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteचटक के बारे में ये जानकारी बहुत अच्छी दी आपने.....सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteअब करता मनुहार ...
ReplyDeleteरी बूंद बरस जा मोरे मन द्वार ..
गंगा ना जानुँ ...जमुना ना जानुँ ...
नित घट-घट बिचरन नाहिं जानुँ ...
रे निर्मल जल .....
प्रेम रस ....
बूंद बूंद स्वाति बरस.....
कोमल रिशब सी कोमल रचना ... कोमल स्वर सी कोमल भाव ... झंकृत करते हुवे मन को ... अनुपम रचना ...
हृद सील तोष पाउँ ...
ReplyDeleteक्षुधा मिटाऊँ....मैं तर जाऊँ ...!!
मैं तर जाऊँ ...!!
ये पंक्तियाँ बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति है. सुंदर काव्य.
कविता में घुल गया है संगीत...
ReplyDeleteमधुर... सुन्दर!
बहुत सुन्दर चित्रगीत!
ReplyDeleteक्षुधा मिटाऊँ....मैं तर जाऊँ ...!!
ReplyDeleteचातक मन की अंतर्वेदना और मनुहार
बहुत सुंदर
बूंद बूंद स्वाति बरस.....
ReplyDeleteहृद सील तोष पाउँ ...
क्षुधा मिटाऊँ....मैं तर जाऊँ ...!!
मैं तर जाऊँ ...!!
. सुंदर काव्य
प्रकृति का अजब रूप..
ReplyDeleteशब्दों का बेजोड मिलन ....बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .....,।
ReplyDeleteचातक का स्वर रिशब(रे) होता है ऐसा संगीत शास्त्रों मे कहा गया है |और चतक सिर्फ वर्षा का जल पी कर ही अपनी प्यास बुझाता है अन्य पानी पीता ही नहीं |पूरे साल वर्षा की बाट जोहता है ....!!स्वाति नक्षत्र मे जब वर्षा पड़ती है ....चोंच खोल वही पानी पीता है ........बस मनो अमृत ही गृहण करता है ....
ReplyDeleteये मुझे नहीं पता था..
कविता तो सुन्दर है, बारिश के इंतज़ार में वैसे हम भी हैं!
संगीतमय कविता...भीतर रस भरती हुई...
ReplyDeleteजब इतने सुन्दर भाव भरे गीत इंद्र देवता के कानों में पड़ेंगे तो बादल जरूर बरसेंगे ...अनुपमा जी मन मोह लिया आपकी रचना ने
ReplyDeleteसुन्दर चित्रमयी प्रस्तुति!!
ReplyDeleteआपकी सुन्दर भावमय प्रस्तुति ने मन को भाव विभोर कर दिया है अनुपमा जी.
ReplyDeleteमनोरम चित्र प्रस्तुति में चार चाँद लगा रहे हैं.
भक्ति,संगीत मय कविता के लिए हार्दिक आभार जी.
आज तो दुर्लभ दर्शन करा दिए ...
ReplyDelete@दिल्बाग विर्क जी ...आभार मेरी रचना को चर्चा मंच पर लिया ...!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबाहर था काफी दिनों बाद आया हुं ब्लाग पर
आप सभी का आभार ...स्वाति की प्रतीक्षा मे हम सभी हैं ....!!प्रभु कृपा करें ...
ReplyDeleteचातक की प्यास लिये ...
ReplyDeleteस्वाति की आस लिये ...
ताक रहा है आसमान ...
बहुत सुंदर रचना सुंदर चित्र.
आभार.
anupma ji
ReplyDeletekya tippni dun samajh nahi pa rahi hun.aap ki har rachna ka ek alag hi andaaz hota hai .
itni umda prastuti shabdo ka indrjaal ----Wah
bahut bahut hi badhai
poonam
bahut khoob
ReplyDeleteअद्भुत....
ReplyDeleteसादर।
श्रुति दीप अर्चन लिये ...
ReplyDeleteकुछ बह सा रहा है मन ...
हृदय के तार झंकृत कर ..
अनहद नाद सा ...
चातक की प्यास लिये ...
स्वाति की आस लिये ...
ताक रहा है आसमान ...
चकवा चकवी सा प्रेम ..दुर्लभ है इस धरा पर जो करतें हैं ,पातें हैं यह प्रेम रस धन्य हैं वे . .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
रविवार, 1 जुलाई 2012
कैसे होय भीति में प्रसव गोसाईं ?
डरा सो मरा
http://veerubhai1947.blogspot.com/
क्षुधा मिटाऊँ....मैं तर जाऊँ ...!!
ReplyDeletedaarshanikataa to itne se hi spashta ho gayi...sundar!! :)
तनिक क्षुधा मिटी..तनिक तर भी गयी..पर मुई ..क्षुधा..फिर-फिर उभर ही जाती है..
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