प्रत्येक प्रात की
लालिमा में ,
मेरी आसक्ति से
अनुरक्त अनुरति ,
हृदय में ,
शब्दों के आवेग-संवेग में ,
उमड़ती घुमड़ती घटा सी ,
छमाछम झमाझम ....
बूंदों की खनक ,
मेरे आँगन .......
आई हुई मन द्वार ,
नव पात में,नव प्रात में
प्रस्फुटित हरीतिमा की कतार ,
सावन की बहार !!
ओ कविता
अभिनन्दन करो स्वीकार ,
तुम बरसो ऐसे ही बार बार ......!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "